मां भद्रकाली शक्तिपीठ, हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के थानेसर कस्बे में द्वैपायन झील के शांत और आध्यात्मिक वातावरण में स्थित है। यह मंदिर देवी काली के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है और मां भगवती की पवित्रता का प्रतीक है। इसे सावित्री शक्तिपीठ, देविकूप और कालिका पीठ के नाम से भी जाना जाता है।
शिव-सती की प्रसिद्ध कथा के अनुसार, यह मान्यता है कि माता सती का दायां टखना यहां एक कुएं में गिरा था। इसी कारण इस स्थान को शक्तिपीठ का दर्जा प्राप्त है। वर्तमान में यहां संगमरमर का एक टखने का प्रतीकात्मक मूर्ति मां काली की मुख्य मूर्ति के सामने स्थापित है, जिसे भक्तगण श्रद्धा से पूजते हैं।
सावित्री शक्तिपीठ का मंदिर आधुनिक शैली में बना हुआ है, जिसमें एक मुख्य शिखर और दो छोटे शिखर हैं। मुख्य शिखर की ऊंचाई लगभग 80-100 फीट है। मंदिर का आधार सफेद रंग में है, जबकि ऊपरी भाग को लाल, नारंगी, सुनहरे और काले रंगों से सजाया गया है। मंदिर के प्रवेश द्वार से एक सीधा रास्ता लगभग 100 मीटर लंबा है, जहां वाहन पार्क किए जा सकते हैं। रास्ते के दाईं ओर एक पार्क और बाईं ओर खुला क्षेत्र है।
मंदिर के प्रवेश द्वार के पास प्रसाद की दुकान और एक हैंड वॉश एरिया है। यहां से भक्तगण घोड़े की मूर्तियां और अन्य प्रसाद खरीदकर मां भद्रकाली को अर्पित करते हैं। मुख्य मंदिर कक्ष में प्रवेश करने पर एक गोलाकार क्षेत्र में कमल का सुंदरीकरण किया गया है, जिसके चारों ओर घोड़ों की मूर्तियां हैं। मंदिर कक्ष में मां भद्रकाली की मुख्य मूर्ति और प्रवेश द्वार पर दायें टखने की धातु की मूर्ति स्थापित है। भक्तगण यहां सिर झुकाकर परिक्रमा करते हैं और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों की पूजा करते हैं, जिनमें मां सरस्वती, मां गायत्री आदि शामिल हैं।
मुख्य मंदिर कक्ष के दाईं ओर एक सत्संग/कीर्तन हॉल बनाया गया है, जहां भक्त राधा-कृष्ण और सिया-राम की मूर्तियों के सामने भजन-कीर्तन करते हैं।
मुख्य मंदिर कक्ष के बाईं ओर सीढ़ियां हैं, जो मंदिर के प्रथम तल पर ले जाती हैं। यहां शिवलिंग, भगवान रुद्र की मूर्ति, जो मां सती को लेकर जा रहे हैं, और भगवान विष्णु की गरुड़ पर सवार मूर्ति स्थापित है। यह मूर्ति सुदर्शन चक्र के साथ उस पौराणिक घटना का प्रतीक है, जो शक्तिपीठों से जुड़ी है।
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