नागपूषणी अम्मन मंदिर

Nagapooshani Amman Kovil Nainativu Island,
, Jaffna District, Sri Lanka
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नागपूषणी अम्मन मंदिर – श्रीलंका का एक पौराणिक और आध्यात्मिक तीर्थ

श्रीलंका के जाफना जिले से लगभग 36 किलोमीटर दूर स्थित नागदीप द्वीप पर बसा हुआ नागपूषणी अम्मन मंदिर एक अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। इसे नैनातिवु नाम से भी जाना जाता है और यह स्थान हिंदू और बौद्ध दोनों धर्मों के अनुयायियों के लिए पूजनीय है। मान्यता है कि यही वह स्थान है जहाँ माता सती के पायल गिरी थी।

देवी भुवनेश्वरी और मंदिर की महिमा

यह मंदिर देवी पार्वती को समर्पित है, जिन्हें यहाँ नागपूषणी अम्मन और भुवनेश्वरी के रूप में पूजा जाता है। भुवनेश्वरी का अर्थ होता है – ब्रह्मांड की रानी। वे दस महाविद्याओं में से एक मानी जाती हैं और उन्हें सृष्टि की रचना व संचालन का कार्यभार सौंपा गया है। उन्हें सर्वोच्च शक्ति माना जाता है, जो सभी बुराइयों का अंत करती हैं।

किंवदंती है कि नवग्रह और त्रिमूर्ति तक उनके आदेशों को नहीं टाल सकते। इसी कारण वे सर्वोच्च देवी मानी जाती हैं।

इंद्र और ऋषि गौतम की कथा

एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, जब इंद्र ने ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या को छल से बहकाया, तो ऋषि ने उन्हें श्राप दिया कि उनके शरीर पर हज़ार योनि के चिन्ह होंगे। इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए इंद्र ने नागदीप द्वीप पर आकर देवी भुवनेश्वरी की तपस्या की। देवी की कृपा से उनके शरीर के निशान आँखों में बदल गए और तभी से इंद्र को "इंद्राक्षी" कहा गया।

नाग, चील और व्यापारी की दंतकथा

एक अन्य कथा के अनुसार, एक नाग समुद्र पार कर देवी की पूजा हेतु कमल पुष्प लाते समय एक चील के हमले से बचने के लिए समुद्र के बीच स्थित एक चट्टान पर लिपट गया। उसी समय एक व्यापारी, जो देवी का भक्त था, वहां पहुँचा और चील से नाग को छोड़ने की विनती की। चील इस शर्त पर राज़ी हुई कि व्यापारी को नैनातिवु में एक सुंदर मंदिर बनवाना होगा। यही वह मंदिर है जिसे आज नागपूषणी अम्मन मंदिर के रूप में जाना जाता है।

पुर्तगालियों द्वारा विध्वंस और पुनर्निर्माण

मूल मंदिर को 1620 में पुर्तगालियों ने नष्ट कर दिया था। वर्तमान मंदिर की संरचना 1720 से 1790 के बीच पुनर्निर्मित की गई। इस द्वीप और मंदिर का ऐतिहासिक महत्व भी है। 12वीं शताब्दी के अभिलेखों में इसका उल्लेख अंतरराष्ट्रीय व्यापार मार्गों पर एक अहम पड़ाव के रूप में मिलता है।

मंदिर की विशेषताएँ

इस मंदिर में चार गोपुरम (प्रवेश द्वार) हैं:

  • राजा गोपुरम

  • पूर्वी गोपुरम

  • दक्षिण-पूर्व गोपुरम

  • दक्षिण गोपुरम

हर वर्ष जून-जुलाई में महोत्सवम तिरुविला आयोजित होता है, जिसमें देश-विदेश से श्रद्धालु शामिल होते हैं।

मंदिर की एक अनूठी विशेषता यहाँ रावण की दस सिरों वाली प्रतिमा है, जो लिंगम और देवी नागपूषणी के साथ स्थित है।

कैसे पहुँचें?

भारत के प्रमुख शहरों – चेन्नई, बेंगलुरु, और मुंबई से कोलंबो (श्रीलंका) के लिए उड़ानें उपलब्ध हैं। कोलंबो से आप ट्रेन, बस या घरेलू फ्लाइट द्वारा जाफना पहुँच सकते हैं। जाफना से मंदिर सिर्फ 15 मिनट की दूरी पर है।

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