तमिलनाडु के दक्षिणी छोर पर स्थित कन्याकुमारी शक्तिपीठ न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और पौराणिक इतिहास का प्रतीक भी है। यहां देवी सती को "कुमारी अम्मन" के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि देवी सती की रीढ़ की हड्डी यहीं गिरी थी, जिस कारण इसे 51 शक्ति पीठों में शामिल किया गया है।
यह मंदिर 3000 साल से भी अधिक पुराना है और इसे मजबूत पत्थर की दीवारों से घेरा गया है। मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार उत्तर दिशा में है, जबकि पूर्वी द्वार विशेष अवसरों पर ही खोला जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राक्षस बाणासुर ने देवताओं को बंदी बना लिया था। वरदान के अनुसार, बाणासुर को केवल एक कुंवारी कन्या ही पराजित कर सकती थी। तब देवी भगवती ने कुंवारी कन्या का रूप धारण कर बाणासुर का वध किया।
इस दौरान, देवी ने भगवान शिव से विवाह करने की तपस्या की थी। किंवदंती है कि नारद मुनि को यह डर हुआ कि विवाह होने पर बाणासुर का अंत असंभव हो जाएगा। देवताओं ने एक योजना बनाई और बाणासुर को हराया। इस घटना के बाद, देवी को कन्या कुमारी कहा जाने लगा।
कहा जाता है कि भगवान परशुराम ने देवी से पृथ्वी पर रहने का अनुरोध किया, जिसे देवी ने स्वीकार किया। इसके बाद परशुराम ने इस मंदिर का निर्माण किया और देवी की मूर्ति स्थापित की।
वर्तमान मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में पांड्या सम्राटों द्वारा किया गया था। मंदिर के परिसर में देवी के अलावा भगवान सूर्य, गणेश, अयप्पा, देवी बाला सुंदरी, और देवी विजया सुंदरी को समर्पित छोटे मंदिर भी हैं।
मंदिर के अंदर देवी की मूर्ति काले पत्थर की बनी है। यह मूर्ति इतनी सुंदर और आकर्षक है कि इसे देखकर भक्तों का मन अद्भुत शांति का अनुभव करता है। मंदिर के अंदरूनी हिस्से में तीन गर्भगृह, नवरात्रि मंडप, और भूल-भुलैया जैसे गलियारे हैं।
मंदिर परिसर में मूल-गंगातीर्थम नामक एक प्राचीन कुआं भी है, जिसे पवित्र माना जाता है।
कन्याकुमारी शक्तिपीठ केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी प्रसिद्ध है। यह स्थान तीन समुद्रों – बंगाल की खाड़ी, हिंद महासागर, और अरब सागर – के संगम पर स्थित है।
यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य बेहद आकर्षक होता है, जो हजारों पर्यटकों और भक्तों को अपनी ओर खींचता है। इसके साथ ही, पास में स्थित विवेकानंद स्मारक और थिरुवल्लुवर मूर्ति भी दर्शनीय स्थल हैं।
कन्याकुमारी शक्तिपीठ की संरचना अद्भुत और रहस्यमयी है। मंदिर के अंदर का डिज़ाइन भूल-भुलैया जैसा लगता है, जिसे समझ पाना आसान नहीं है। यहां कुल 11 तीर्थ स्थल हैं, जो धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
देवी की मूर्ति के चारों ओर का वातावरण दिव्य और शांतिपूर्ण है। भक्त यहां न केवल देवी के दर्शन के लिए आते हैं, बल्कि आत्मिक शांति और मनोकामना पूर्ति की आशा से भी आते हैं।
निकटतम हवाई अड्डा त्रिवेंद्रम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (करीब 90 किमी) है। वहां से टैक्सी या बस द्वारा मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन है, जो भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
कन्याकुमारी देश के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। राज्य परिवहन और निजी बसें यहां तक आसानी से पहुंचने का साधन हैं।
कन्याकुमारी शक्तिपीठ की यात्रा के लिए अक्टूबर से मार्च का समय सबसे उपयुक्त है। इस दौरान मौसम सुहावना होता है और प्रमुख धार्मिक उत्सव जैसे नवरात्रि और दुर्गा पूजा मनाए जाते हैं।
कन्याकुमारी शक्तिपीठ न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भारतीय पौराणिक कथाओं, इतिहास और प्राकृतिक सौंदर्य का भी प्रतीक है। यहां देवी कुमारी अम्मन के दर्शन और तीन समुद्रों के संगम का अनुभव जीवन को एक नई दिशा प्रदान करता है।
यदि आप आस्था, इतिहास और प्रकृति के संगम का अनुभव करना चाहते हैं, तो कन्याकुमारी शक्तिपीठ आपकी सूची में होना चाहिए।
कृपया अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया लिखें