पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले में कटवा से 8 किमी की दूरी पर स्थित बहुला शक्तिपीठ, देवी सती की पवित्र आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है। अजय नदी के किनारे केतुग्राम में स्थित यह मंदिर प्राचीन वास्तुकला, शांत वातावरण और पौराणिक महत्व के कारण प्रसिद्ध है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने जब माता सती के जलते हुए शरीर को सुदर्शन चक्र से काटा, तो उनके बाएं हाथ का भाग इस स्थान पर गिरा। संस्कृत में ‘बहु’ का अर्थ हाथ होता है, और ‘बहुला’ का अर्थ है समृद्धि। देवी बहुला को माता आदिशक्ति का अवतार माना जाता है और उनके साथ भैरव भीरुक की पूजा की जाती है। भैरव भीरुक ध्यान और सिद्धि के प्रतीक माने जाते हैं।
बहुला शक्तिपीठ वह स्थान है, जहां भक्त कभी खाली हाथ नहीं लौटते। ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त सच्चे दिल से देवी की शरण में आता है, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। देवी बहुला के साथ उनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश की मूर्तियां भी मंदिर में प्रतिष्ठित हैं।
मंदिर का गर्भगृह विशाल आंगन से जुड़ा हुआ है और फर्श लाल पत्थरों से बना है। मंदिर की वास्तुकला प्राचीन है और इसकी शांति और दिव्यता भक्तों के मन को शीतलता प्रदान करती है। घंटियों की गूंज और मंत्रोच्चारण इस वातावरण को और भी पवित्र बनाते हैं।
मंदिर में प्रतिदिन पूजा और आरती का आयोजन होता है। देवी बहुला की महिमा से जुड़ी कई चमत्कारिक कहानियां यहां प्रचलित हैं, जो भक्तों के विश्वास को और मजबूत करती हैं।
मंदिर में प्रवेश के लिए सादगीपूर्ण और पारंपरिक परिधान जैसे साड़ी (महिलाओं के लिए) और धोती-कुर्ता (पुरुषों के लिए) अनिवार्य हैं।
बहुला शक्तिपीठ देवी सती के अद्वितीय शक्ति रूप को समर्पित एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यह स्थान न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यदि आप देवी की कृपा प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं या शांति और दिव्यता की खोज में हैं, तो बहुला शक्तिपीठ आपके लिए एक अनमोल स्थान हो सकता है।
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