मध्य प्रदेश का मुरैना जिला, जो कि बज-मण्डल में आता है और शास्त्रों के अनुसार मयूर वन कहा जाता है। इसके अंतराल में जो कल कल करती हुई मां चरणाव (चंबल) है, जिनके आँचल में सदैव से वीर पुरुष, समाज सुधारक त्रितापों को निवारण करने वाले ओजस्वी सुपुत्रों का जन्म होता रहा है। चम्बल की घाटी संत और विद्वानों के विषय में बहुत ही रमणीक तपस्थली जानी जाती है। इसी जिले के गांव चांदपुर, जोकि पहले से ही सिद्ध सम्राट श्री श्री 1008 परम समर्थ संत श्रीलज्जारामजी महाराज की तपस्थली और जन्मस्थली है, का भी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है।
महाराज जी का जन्म सनाढ्य ब्राह्मण उपाध्याय परिवार में हुआ, जिन्होंने अपनी भक्ति से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। इन्हीं के वंशज (भतीजे) स्व. श्री रामरूप जी महाराज थे, जिन्होंने विदेह के रूप में जीवन-यापन करते हुए अपने बालकों को सुंदर संस्कार दिए। उनके सुपुत्र श्री व्रजकिशोर जी, श्रीरामदत्त जी, श्री ब्रजमोहन जी हुए। इन्होंने धर्म का आचरण करते हुए अपने जीवन को सफल बनाया। विशेष रूप से श्रीरामदत्त जी महाराज ने गुरु प्रेरणा से अपने भानुकृष्ण बालक को अनमोल रत्न के रूप में समाज में पाश्चात्य सभ्यता की ओर उन्मुख समाज को नव चेतना प्रदान करने, धार्मिक तथा आध्यात्मिक पुनर्जागरण करने, जनमानस को अमिय रस से आप्लावित करने और भारत माँ की सेवा में समर्पित किया।
श्री भानुकृष्ण महाराज जी का धार्मिक जीवन प्रारंभ से ही बहुत प्रेरणादायक रहा है। पाँच वर्ष की अवस्था से ही अपने दादा जी के साथ रहना और सत्संग में जाना उनके जीवन का हिस्सा बन गया था। दादाजी जो शिक्षा देते थे, उस शिक्षा के प्रभाव से जीवों पर दया करना, धर्म का आचरण करना, और जीवों के प्रति उदार भाव जैसे संस्कार बचपन से ही महाराज जी में विकसित हो गए। साथ ही, महाराज जी का संगीत के प्रति विशेष लगाव रहा। जब माता-पिता ने महाराज जी का रुझान सत्संग में देखा तो उनके मन के भावों को समझते हुए उन्हें धर्म-मार्ग की ओर प्रवर्तित कर दिया।
कुछ समय बाद चंबल अंचल के प्रसिद्ध संत, जिनकी ख्याति राष्ट्रीय संत के रूप में है, ऐसे संत श्री श्री 1008 परम समर्थ संत श्री माखनदास जी महाराज के दर्शन व कृपा प्राप्त हुई। पूज्य गुरुदेव की कृपा से महाराज जी के पिताजी ने छः वर्ष की अवस्था में महर्षि विश्वविद्यालय में प्रवेश कराया, जहाँ उन्होंने गुरुओं द्वारा वेदों की शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद, 10 वर्ष की अवस्था में श्रीधाम वृंदावन के श्रीनारायणशरणम् विद्यापीठ में प्रवेश किया, जहाँ आचार्य श्रीरामदत्त शास्त्री जी के सान्निध्य में भागवतजी का अध्ययन किया।
इसके बाद, श्री श्री 1008 परम समर्थ संत श्री माखनदास जी महाराज से दीक्षा प्राप्त की। गुरुदेव की कृपा व आशीर्वाद से 14 वर्ष की आयु में श्री 1008 समर्थ श्री लज्जाराम बाबा के आश्रम पर सर्वप्रथम कथा कहने का सुअवसर प्राप्त हुआ। तब से, महाराज जी भारत के कई प्रांतों में श्रीमद् भागवत कथा के माध्यम से जन जागरण में कार्यरत हैं।
श्री भानुकृष्ण महाराज जी की कथाएँ विगत बारह वर्षों से निरंतर चल रही हैं। बारह वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने 130 श्रीमद् भागवत कथाएँ, 8 श्रीमद् देवी भागवत, 5 शिव महापुराण, 8 राम कथाएँ की हैं। इसके साथ ही उन्होंने काफी संख्या में यज्ञ और अनुष्ठान भी किए हैं। आज उनके कई प्रांतों में अनेक शिष्य हैं, जो उनकी शिक्षाओं का अनुसरण करते हैं।
महाराज जी की कथाएँ यूट्यूब और फेसबुक जैसे डिजिटल प्लेटफार्म पर भी उपलब्ध हैं, जहाँ लाखों लोग उन्हें सुनते हैं। आज उनके अनेक प्रशंसक और भक्त उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं। श्री भानुकृष्ण महाराज जी ने अपने जीवन को धर्म, अध्यात्म और समाज सेवा में समर्पित किया है, और उनका योगदान समाज में एक नई आध्यात्मिक चेतना का प्रवाह कर रहा है।
पं भानु कृष्ण शास्त्री की दिव्य कथा का आयोजन निम्नलिखित तिथियों पर किया जाएगा। कृपया सभी श्रद्धालु निम्नलिखित कार्यक्रम के अनुसार कथा में सम्मिलित होकर पुण्य लाभ अर्जित करें:
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