पं. शशिशेखर जी

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बाल कथावाचक पं. शशिशेखर: भक्ति और ज्ञान की अद्भुत प्रतिभा

परिचय

आज हम आपको परिचय करवाते हैं एक असाधारण प्रतिभा से - पं. शशिशेखर, जो मात्र 9 वर्ष की आयु में एक प्रसिद्ध बाल कथावाचक बन चुके हैं। उत्तर प्रदेश के झांसी जिले से आने वाले इस युवा कथाकार ने अपनी मधुर वाणी और गहन ज्ञान से न केवल भारत के विभिन्न राज्यों में, बल्कि लाखों श्रोताओं के दिलों में भी अपना स्थान बना लिया है।

प्रारंभिक जीवन और प्रेरणा

शशिशेखर का जन्म एक धार्मिक परिवार में हुआ, जहां उन्हें बचपन से ही आध्यात्मिक वातावरण मिला। उनके नाना, भागवत आचार्य पं. देवेंद्र तिवारी, और माता वती देवी ने उनमें भजन कीर्तन, सत्संग और रामकथा के प्रति रुचि जगाई। यह वातावरण उनके लिए वरदान साबित हुआ, और मात्र 6 वर्ष की आयु में ही उन्होंने आसपास के गांवों में श्रीराम कथा करना शुरू कर दिया।

अद्भुत प्रगति

  • 9 वर्ष की वर्तमान आयु तक, शशिशेखर 150 से अधिक श्रीराम कथाएँ कर चुके हैं।
  • 2017 में, उन्होंने उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध संत रामलखनदास वेदांती महाराज से दीक्षा प्राप्त की।
  • उन्हें 31 राग-रागिनियों का ज्ञान स्वतः प्राप्त हुआ है, जो उनकी असाधारण प्रतिभा का प्रमाण है।

कथावाचन का अनूठा अंदाज़

शशिशेखर की कथाओं की विशेषता है उनका सरल और बाल-सुलभ अंदाज़। वे जटिल धार्मिक कथाओं को इस तरह प्रस्तुत करते हैं कि हर उम्र का व्यक्ति उन्हें आसानी से समझ सके। उनकी पहली बड़ी कथा में, जो मध्य प्रदेश के हाड़ी गांव में हुई, 500 से 1000 लोगों ने भाग लिया। झांसी के पास मऊरानीपुर में उनकी एक कथा में 15,000 से अधिक श्रोता उपस्थित थे, जिसका टेलीविजन पर सीधा प्रसारण भी किया गया।

शिक्षा और कथावाचन का संतुलन

शशिशेखर वर्तमान में कक्षा 5 के छात्र हैं और अपनी पढ़ाई के साथ-साथ कथावाचन भी करते हैं। वे मानते हैं कि रामकथा से उनकी पढ़ाई में एकाग्रता आती है और दोनों गतिविधियाँ एक-दूसरे के पूरक हैं। उनके पिता, जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, उनकी यात्राओं में साथ रहते हैं, जिससे उनकी शिक्षा बाधित न हो।

भविष्य की आकांक्षाएँ

शशिशेखर की महत्वाकांक्षाएँ उनकी उम्र से कहीं बड़ी हैं:

  1. वे अयोध्या के प्रसिद्ध कनक बिहारी सरकार के दरबार में रामकथा करना चाहते हैं।
  2. नवनिर्मित राम मंदिर में कथा करने की उनकी गहरी इच्छा है।
  3. वे प्रख्यात कथावाचक मुरारी बापू से मिलना चाहते हैं।

प्रेरणा का स्रोत

पं. शशिशेखर की कहानी हमें सिखाती है कि प्रतिभा और समर्पण किसी भी उम्र में चमत्कार कर सकते हैं। वे न केवल बच्चों के लिए, बल्कि हर उम्र के लोगों के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं। उनका मानना है कि भगवान का आशीर्वाद और कृपा ही उनकी सफलता का मूल है।

निष्कर्ष

जैसे-जैसे पं. शशिशेखर बड़े होंगे, उनकी प्रतिभा और निखरेगी। यह देखना रोमांचक होगा कि वे भविष्य में अपनी कला को किस ऊंचाई तक ले जाते हैं। उनकी यात्रा हमें याद दिलाती है कि आध्यात्मिक ज्ञान और भक्ति की कोई उम्र नहीं होती, और एक छोटा बच्चा भी अपने समर्पण और प्रतिभा से बड़ों को प्रेरित कर सकता है।

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