आचार्य दुर्गेश पाठक जी महाराज का नाम आज के समय में सनातन धर्म और अध्यात्मिक क्षेत्र में एक प्रमुख स्थान रखता है। उनका जीवन, उनके विचार और उनके कार्य धार्मिक और आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ावा देने में समर्पित हैं। उनका जन्म 25 मार्च 1991 को हरदेव मंदिर, दशविषा मोहल्ला, मानसी गंगा घाट, गोवर्धन (मथुरा), उत्तर प्रदेश में हुआ। महाराज जी का परिवार महान राष्ट्रीय कवि श्रीधर पाठक की वंशावली से संबंधित है, जिनका पैत्रिक गांव जोंधरी जिला फिरोज़ाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
आचार्य दुर्गेश पाठक जी महाराज ने अपनी शिक्षा सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी से प्राप्त की, जहाँ उन्होंने शास्त्री और आचार्य की उपाधि हासिल की। उनकी शिक्षा ने उन्हें धार्मिक ग्रंथों जैसे कि श्रीमद भागवत, शिवमहापुराण और रामकथा में महारत हासिल करने में सक्षम बनाया। उनके प्रवचन शास्त्रों के गहन अध्ययन और उनके अपने आध्यात्मिक अनुभवों का सुंदर संयोजन होते हैं।
हालांकि आचार्य जी का जन्म और प्रारंभिक जीवन मथुरा के गोवर्धन में बीता, लेकिन उनकी पारिवारिक और सांस्कृतिक जड़ें फिरोज़ाबाद में गहराई से जुड़ी हुई हैं। उनका पैत्रिक गांव जोंधरी जिला फिरोज़ाबाद में स्थित है, जहाँ उनके परिवार का एक प्रतिष्ठित नाम है।
आचार्य दुर्गेश पाठक जी महाराज ने अपने जीवन को धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान के प्रसार के लिए समर्पित किया है। उन्होंने श्रीमद भागवत कथा, श्री शिवमहापुराण कथा, और श्री रामकथा के माध्यम से सनातन धर्म के सिद्धांतों को समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुँचाया है। उनके प्रवचन सरल और प्रेरणादायक होते हैं, जो श्रोताओं को गहन आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करते हैं।
महाराज जी ने 'माँ शक्ति सेवा समिति' की स्थापना की है, जो कि सनातनी परंपराओं के संवर्धन और समाजसेवा के कार्यों में समर्पित है। इस समिति के माध्यम से उन्होंने कई सेवा प्रकल्पों का प्रारंभ किया है, जिसमें गरीबों की सहायता, धार्मिक आयोजनों का प्रबंधन, और समाज में धार्मिक चेतना का जागरण शामिल है। उनका आश्रम, आध्यात्मिक साधना और समाजसेवा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।
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आचार्य दुर्गेश पाठक जी महाराज का जीवन और कार्य उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो धर्म, अध्यात्म और सेवा के मार्ग पर अग्रसर होना चाहते हैं। उनकी उपस्थिति सनातन धर्म के सिद्धांतों को जीवित रखने और उसे जन-जन तक पहुँचाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
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