पं. सागरदास जी अपने मधुर वचनों और भक्ति से भरे प्रवचनों के माध्यम से भक्तों के हृदय में भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति का संचार करते है। पं. सागरदास जी महाराज का जन्म 20 दिसंबर 1995 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में हुआ। त्रिपाठी ब्राह्मण परिवार में जन्मे, पं. सागरदास जी का बचपन धार्मिक और पांडित्य परंपराओं में रचा-बसा था। उनके दादा, स्वर्गीय श्री भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी जी, न केवल एक सरकारी अध्यापक थे बल्कि पांडित्य कार्य में भी निपुण थे। पिता श्री रमाकांत त्रिपाठी ने बाहरी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया, जबकि माता श्रीमती सनिल त्रिपाठी ने परिवार का पालन-पोषण किया। इस धार्मिक परिवेश में पं. सागरदास जी ने बचपन से ही धर्म और संस्कारों का गहन अध्ययन किया।
पं. सागरदास जी महाराज का आध्यात्मिक जीवन वृंदावन की पावन भूमि से गहराई से जुड़ा हुआ है। उन्होंने अपनी धार्मिक शिक्षा वृंदावन के चैन बिहारी कुंज आश्रम में प्राप्त की। वृंदावन की पवित्रता और भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का उनके जीवन में विशेष महत्व है। इसी भूमि पर उन्होंने वेदों और शास्त्रों का गहन अध्ययन किया, जो उनके आध्यात्मिक जीवन की नींव बना।
पं. सागरदास जी महाराज ने वर्ष 2019 से श्रीमद् भागवत कथा का वाचन आरंभ किया। उनकी कथा में श्रोताओं को भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का अनुभव होता है। वे सरल और मधुर भाषा में कथा का वाचन करते हैं, जिससे श्रोता उसमें डूब जाते हैं। उनकी कथाओं में न केवल धर्म का प्रचार होता है, बल्कि उनमें आध्यात्मिक गहराई भी होती है, जो श्रोताओं को भक्ति के मार्ग पर प्रेरित करती है।
पं. सागरदास जी महाराज का जीवन एक निरंतर आध्यात्मिक यात्रा है। उन्होंने अपने गुरुदेव, श्री श्री 1008 संत श्री प्रेमदास जी महाराज से दीक्षा प्राप्त की और उन्हीं के मार्गदर्शन में अपनी कथा यात्रा को आगे बढ़ाया। उनके प्रवचन और कथाओं के माध्यम से वे समाज में धार्मिक और आध्यात्मिक जागरूकता फैलाने का कार्य कर रहे हैं।
पं. सागरदास जी महाराज न केवल कथा वाचन में संलग्न हैं, बल्कि समाज सेवा में भी सक्रिय हैं। उनके प्रवचनों के दौरान समाज के कमजोर और असहाय वर्ग की सहायता के लिए विभिन्न सामाजिक गतिविधियां आयोजित की जाती हैं। वे धर्म और सेवा के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करते हैं।
पं. सागरदास जी महाराज का जीवन भगवान श्रीकृष्ण की सेवा और भक्ति के लिए समर्पित है। उनकी कथाओं और प्रवचनों के माध्यम से वे समाज में शांति, भक्ति, और आध्यात्मिक जागरूकता का संदेश फैलाते हैं। उनके कार्यक्रमों में केवल कथा वाचन ही नहीं, बल्कि भक्ति संगीत, कीर्तन, और ध्यान के माध्यम से श्रोताओं को भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जाता है।
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