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गलत सलाह देने का परिणाम (एक शिक्षाप्रद कहानी)एक गांव में एक किसान रहता था। उसने दो जानवर पाल रखे थे—एक गधा और एक बकरा। गधा बहुत मेहनती था। वह...
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गलत सलाह देने का परिणाम (एक शिक्षाप्रद कहानी)

एक गांव में एक किसान रहता था। उसने दो जानवर पाल रखे थे—एक गधा और एक बकरा। गधा बहुत मेहनती था। वह प्रतिदिन खेतों से लेकर बाजार तक बोझ ढोता था। चाहे तेज धूप हो या मूसलाधार बारिश, गधा बिना शिकायत किए अपने मालिक का काम करता था।

गधा की मेहनत देखकर किसान उसे अच्छा चारा, घास और पानी देता था। कभी-कभी वह उसे गुड़ या हरी घास भी खिला देता था। यह देखकर बकरा जल-भुन जाता था। बकरा सोचता, “मैं तो दिन भर खुले में घूमता हूं, खेलता हूं, उछलता हूं, लेकिन मुझे कोई विशेष खाना नहीं मिलता। और यह गधा जो सारा दिन बोझ ढोता है, उस पर तो मालिक की खास कृपा बरसती है!”

यह सोचते-सोचते बकरा अंदर ही अंदर ईर्ष्या की आग में जलने लगा। वह सोचने लगा कि कैसे गदहे को मालिक की नजर से गिराया जाए ताकि वह खुद गदहे की जगह सम्मान पाए।

एक दिन बकरे ने गधा से कहा, “भाई! मैं तो मालिक की कृपा पर हँसता हूँ। मुझे तो खुला छोड़ रखा है—जहाँ मन किया, उधर गया; जो मन किया, किया। लेकिन तुम बेकार ही मालिक के लिए जान तोड़ मेहनत करते हो। फिर भी वह तुम्हें पीठ पर बोझ लादकर हर जगह घसीटता है।”

गधा थोड़ा मायूस होकर बोला, “भाई, मुझे भी बुरा लगता है, पर मैं क्या कर सकता हूँ? मेरा तो यही काम है।”

बकरे ने चालाकी से कहा, “उपाय है! क्यों न तुम एक दिन बीमार होने का बहाना बना लो? किसी गढ़े में गिर पड़ो और फिर आराम से कुछ दिन तक बैठकर खाओ-पीओ। मालिक को तो लगना चाहिए कि तुम अब कमजोर हो गए हो।”

गधा सीधा-सादा और सरल स्वभाव का था। उसने बकरे की बातों पर विश्वास कर लिया। अगले ही दिन उसने योजना के अनुसार खुद को एक गढ़े में गिरा दिया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा।

गिरने से वह सचमुच घायल हो गया। उसके पैरों में मोच आ गई और शरीर पर कई खरोंचें आ गईं। अब वह सच में चलने-फिरने लायक नहीं रहा। किसान को जब पता चला, तो वह घबरा गया। उसने तुरंत पशु-चिकित्सक को बुलाया।

डॉक्टर ने गधा को देखकर कहा, “गंभीर चोट है। इसे कुछ दिनों तक आराम की जरूरत है। साथ ही इसके घावों पर बकरे की चर्बी से मालिश करनी होगी, तभी यह जल्दी ठीक होगा।”

अब किसान के पास कोई विकल्प नहीं था। उसने जैसे ही बकरे की ओर देखा और छुरी उठाई, बकरे के होश उड़ गए। वह बुरी तरह डर गया और रोते-रोते कहने लगा, “हाय! मैंने तो केवल चालाकी की थी। मैंने तो सोचा था गधा को मुश्किल में डालकर खुद फायदा उठाऊंगा, पर अब खुद ही फंस गया।”

बकरे की आंखों से आँसू बहने लगे। वह बार-बार पछता रहा था, “हाय! मेरी बुद्धि को आग लग गई थी, जो मैंने ऐसी कुटिल सलाह दी। अब उसी का परिणाम मुझे भोगना पड़ रहा है।”

पर अब पछताने का कोई लाभ नहीं था। किसान ने बकरे को काट दिया और उसकी चर्बी से गदहे के घावों की मरहम-पट्टी शुरू कर दी।

शिक्षा:
जो दूसरों के लिए चाल चलता है, वह स्वयं ही फंस जाता है। ईर्ष्या और छल का परिणाम हमेशा बुरा ही होता है। दूसरों की सफलता या सम्मान देखकर जलना नहीं चाहिए, बल्कि खुद मेहनत करके आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।

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