संत माधवदास और भगवान कृष्ण ने की कटहल चोरी

जगन्नाथ पुरी में वास करते हुए संत माधव दास जी नित्य शाम को सागर किनारे भ्रमण पर जाते थे। माधव दास जी भगवान श्री कृष्ण के प्रति सखा रूप का भाव रखते थे। प्रभु भी नित्य शाम को माधव जी के साथ बैठकर खूब बात किया करते थे।
एक दिन प्रभु आये, माधव दास ने देखा प्रभु बहुत उदास हैं माधव दास ने पूछा प्रभु आप उदास क्यों हैं? प्रभु ने कहा माधव दास बहुत दिन हो गए चोरी नहीं करी। माधव दास जी ने कहा अरे अभी यह आदत छोड़ो बचपन की बात और थी। प्रभु बोले हां वह तो ठीक है पर जिसकी जो आदत पड़ी है वह वही करेगा...
माधव दास जी ने प्रभु को बहुत समझाया पर प्रभु नहीं माने। अंततः माधव दास जी ने कहा इतनी पड़ी है तो चोरी कर ही लो। प्रभु बोले कर तो ले पर सखा नहीं है।वृंदावन में तो बहुत सखा थे यहां कोई नहीं है । एक तुम ही हो माधव दास। तुम ही चलो। माधव दास जी ने कहा- कहां प्रभु ,बोले चोरी करने।

माधव दास जी बोले अरे प्रभु हमें चोरी करना नहीं आता। हमने जिंदगी भर भजन किया है।
प्रभु बोले मन बनाओ चोरी करना हम सीखा देंगे। और चोरी में थोड़ी फुर्ती रखनी चाहिए और क्या। प्रभु ने जैसे तैसे माधव दास जी को चोरी के लिए तैयार किया।

माधव दास जी ने कहा प्रभु चलो चलते हैं चोरी करने। लेकिन जाना कहां है। प्रभु ने कहा जगन्नाथ पुरी के राजा के बगीचे में, बड़े सुंदर कटहल के फल लगे हैं पर यह भेजते नहीं है। माधव दास जी बोले चोरी करने की क्या जरूरत है राजा साहब हमारे शिष्य हैं हम कल जाकर उनसे कहेंगे और आपके लिए कटहल ले आएंगे। भगवान बोले ऐसे नहीं, चोरी करके पाने का आनंद अलग होता है।
प्रभु और माधव दास जी चोरी करने के लिए राजा के बगीचे में चल दिए प्रभु ने माधव दास जी से कहा धीरे-धीरे बोलना।
माधव दास जी को चोरी का कोई अभ्यास नहीं था, जैसे ही दोनों एक कटहल के बगीचे के पास पहुंचे। प्रभु ने माधव दास जी से कहा कटहल के पेड़ के ऊपर चढ़ जाओ। तुम ऊपर से कटहल गिराना, नीचे हम ले लेंगे। अब माधव दास जी जोर से बोले- कन्हैया इस पेड़ पर चढ़े या उसे पेड़ पर।
इतने में बगीचे का माली जग गया,उसने सुना और उसने कहा मैं बताता हूं किस पेड़ पर चढ़ना है अभी आता हूं रुको जरा।
भगवान ने कहा मैंने कहा था धीरे-धीरे बोलना जोर से नहीं बोलना माधवदास बोले अच्छा ठीक है प्रभु।
बगीचे का माली आया। तब तक माधव दास जी और प्रभु जी एक पेड़ के पीछे छुप गए और माली पुनः सो गया।

पुनः प्रभु ने माधव दास जी से कहा इस पेड़ पर चढ़ो और धीरे बोलना। माधव दास जी पेड़ के ऊपर चढ़ गए । भगवान ने कहा ऊपर से कटहल तोड़कर गिराना नीचे हम पकड़ लेंगे माधव दास जी ने जोर से पूछा प्रभु यह वाला की यह वाला। आवाज सुनकर बगीचे का माली पुनः जाग गया और डंडा लेकर आया इतने में भगवान अंतर ध्यान हो गए।

माधव दास जी पेड़ से उतरने लगे माली ने उन्हें पकड़ लिया और अंधेरे में दो डंडे लगा दिए और रात भर बांध कर रखा। और कहा सुबह राजा जी के पास ले चलेंगे। अब माधव दास जी इधर-उधर देखने लगे माली पूछा क्या देख रहे हो माधव दास जी ने कहा कुछ नहीं। मन ही मन माधव दास जी ने सोचा कि वह कहां है जो हमें इधर ले आए थे।
सुबह हुआ। माली माधव दास जी को राजा जी के पास ले जाने लगे। रास्ते में ही राजा जी मिल गए, राज जी ने देखा कि हमारे गुरु को माली क्यों बांधे ले जा रहा है। राजाजी क्रोध में माली को मारने पहुंचे। माधव दास जी ने कहा इससे कुछ मत बोलो
हम जब ऐसे बधने के काम करेंगे तो बंधेगे ही। राजा जी बोले आपने ऐसा क्या काम किया है? माधव दास जी बोले चोरी। राजा बोले आपने चोरी क्यों की? माधव दास जी बोले कुसंग में पड़कर सब कुछ करना पड़ता है।
राजा साहब बोले किसका कुसंग माधव दास जी बोले यह हम आपके घर में बताएंगे। राजा जी माधव दास जी को अपने महल ले गए माधव दास जी ने सारा वृत्तांत राजा साहब को बताया। सारी बात जानकर राजा साहब जी के नयन सजल हो गए हृदय रोमांचित तो उठा एवं तुरंत ही राजा साहब ने पूरा का पूरा बगीचा श्री जगन्नाथ जी के नाम कर दिया।

शाम को पुनः संत माधव दास जी सागर किनारे पहुंचे। वहां भगवान प्रकट हुए भगवान ने माधव दास जी से पूछा और संत जी रात कैसी कटी।
संत माधवदास जी बोले हम तो पीटे,रातभर बांधे रहे और आप तो अंतर्ध्यान हो गए लेकिन एक भी कटहल नही ला पाए। हमे देखिए हम तो पूरा का पूरा बगीचा ही आपके नाम करा लाए है।
कहते हैं आज भी वह बगीचा श्री जगन्नाथ जी के नाम पर है
जय श्री कृष्ण
- राजेश्वरानंद जी महाराज

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