कैवर्त देश के राजा सुकंत एक बार सुमेरु पर्वत पर होने वाली संत सभा में सम्मिलित होने के लिए जारहे थे। रास्ते में उन्हें नारद जी मिले।सुकंत ने नारद जी के चरणों में प्रणाम किया। नारद जी ने आशीर्वाद देते हुए कहा, 'सुखी रहो।' नारद जी ने पूछा, 'कहाँ जा रहे हो?' राजा ने कहा, 'संत सभा में सम्मिलित होने के लिए जा रहा हूँ।'
नारदजी ने कहा, 'जरूर जाना चाहिए, संतों का आशीर्वाद प्राप्त करो।' फिर नारद जीने कहा, 'एक बात सुनो, वहाँ सभी संतों को प्रणाम करना परंतु विश्वामित्र जी को प्रणाम मत करना।' राजा सुकंत को यह बात अटपटी लगी, परंतु नारद जी की बात मान कर वह आगे चल दिए।
सुकंत सभा में पहुँचे और सभी संतोंको प्रणाम किया, परंतु विश्वामित्र जी को प्रणाम नहीं किया। सबके बीच ऐसा अपमान देखकर संत सभा समाप्त हुई। सुकंत अपने घर चले गएऔर विश्वामित्र जी सीधे अयोध्या पहुंचे।
रामजी विश्राम कर रहे थे, मध्याह्न का समय था।लक्ष्मण जी पहरे पर थे। विश्वामित्र जी ने कहा, 'राम जी कहाँ हैं? मैं इसी समय उनसे मिलूंगा।' लक्ष्मण जी ने कहा, 'अभी वे सो रहेहैं।' विश्वामित्र जी बोले, 'जब राजा सोता है तो ऐसा ही होता है।' राम जी ने आवाज सुन ली और जागकर आए। उन्होंने प्रणाम किया और पूछा, 'गुरुजी, क्या हुआ?' गुस्से में विश्वामित्र जी ने कहा, 'तुम तो सो रहेहो, तुम्हें क्या पता! जबराजा सोता है तो ऐसा ही होता है।ऋषि-मुनियों का अपमान हो रहा है, यह साधु परंपरा का अपमान है।' राम जी ने पूछा, 'किसने किया अपमान?' विश्वामित्र जी ने कहा, 'जानकर क्या करोगे?' राम जी ने कहा, 'गुरुजी, आपके चरणों की सौगंध खाकर कहता हूँ कि अपमान करने वाले को मृत्युदंड दूँगा। कल मैं अपने हाथों से उसका वधकरूंगा। आप मुझे उसका नाम बताइए।' विश्वामित्र जी ने कहा, 'राजा सुकंतने। खलों को दंडमिलना चाहिए, ठीक निर्णय हैतुम्हारा।'
जैसे ही यह बात राजा सुकंत को पता चली कि राम जी ही वध करने वाले हैं, वह घबरा गए और नारद जी को ढूँढने लगे।अब नारद जी उन्हें मिले नहीं। पहले तो अनायास ही मिल गए थे, अब ढूँढने पर भी नारदजी नहीं मिल रहे थे। राजा सुकंत विलाप करने लगे। विलाप सुनकर नारद जी प्रकटहुए। राजन ने प्रणाम किया। नारद जी ने पूछा, 'कहो राजन, सब कुशल मंगल है?' राजन ने कहा, 'नारद जी, किस चीज की कुशलता? अब हमारा वध हो जाएगा, राम जी हमें नहीं छोड़ेंगे।' नारद जी बोले, 'यह मृत्यु लोक है, यहाँ तो यह क्रम चलता ही रहता है।' राजन ने कहा, 'हम मरना नहीं चाहते।' नारद जी बोले, 'कौन मरना चाहता है? यह प्रकृति का नियम है।' राजा ने कहा, 'महाराज जी, भगवान मार डालेंगे।' नारद जी बोले, 'यह और अच्छा है, सद्गति होगी।' राजा बोले, 'अरे महाराज, आपने ही कहा था कि विश्वामित्र जी को प्रणाम नहीं करना, मैंने प्रणाम नहीं किया और राम जी ने सौगंध खा ली है कि मेरा वध करेंगे। कुछ कीजिए, नारद जी, मुझे बचा लीजिए।' नारद जी ने कहा, 'अब मैं कुछ नहीं कर सकता।' सुकंत ने कहा, 'आपने अच्छी सलाह दी थी, अब आप ही मुझे बचाइए।' नारद जी ने कहा, 'एक ही उपाय है: सामनेवाले पर्वत पर माता अंजनी की गुफा है। माता वहाँ तपस्या कर रही हैं।दरवाजे पर बैठकर रोना, अंजनी माता आ जाएँगी और यदि वह तुम्हें बचाने का वचन देदेंगी, तो तुम बच जाओगे।'
सुकंत पहुँचे गुफा के द्वार पर और जोर-जोर से रोने लगे। तब माता अंजनी गुफा से बाहर आईं। माता ने पूछा, 'क्या हुआ? क्यों विलाप कर रहे हो?' राजा बोले, 'माते, मेरे प्राणों की रक्षा करो। कल विश्वामित्र जी मुझे मरवा डालेंगे।' अंजनी माता ने कहा, 'मैं तुम्हें वचन देती हूँ, तुम मेरी शरण में आए हो, तुम्हारे प्राणों की रक्षा होगी।' अंजनी माता ने कहा, 'गुफा में बैठो,' और माता स्वयं गुफा के बाहर बैठ गईं।
नियम अनुसार हनुमान जी शाम को आए। उन्होंने अंजनी माता को प्रणाम किया और पूछा, 'माँ, आप उदास हैं?' माताने कहा, 'एक आश्रित की रक्षा का वचन दिया है, क्या उसे पूरा करोगे?' हनुमान जी ने कहा, 'माँ की आज्ञा अवश्य पूरी होगी।' माता ने कहा, 'मुझे वचन दो।' हनुमानजी बोले, 'मैं अपने इष्ट श्रीराम के चरणों की सौगंध खाकर आपको वचन देता हूँ, मैं उसे बचाऊंगा।'
अंजनी माता ने राजा सुकंत सेकहा, 'बाहर आओ।' सुकंत गुफासे निकलकर बाहर आए। हनुमानजी ने पूछा, 'कौन आपको मारना चाहता है?' सुकंतने कहा, 'राम जी मार डालेंगे।' माता अंजनी ने पूछा, 'तुम तो कह रहे थेकि विश्वामित्र जी मारेंगे?' सुकंत ने कहा, 'नहीं, विश्वामित्र जी के कहने पर राम जी मारेंगे।' हनुमान जी ने सोचा, 'पूरी मुसीबत में फँस गए।' उन्होंने सुकंत को उसकी राजधानी में छोड़ा और खुद अयोध्या पहुँचे।
अयोध्यामें राम जी की सेना युद्ध की तैयारी कररही थी। हनुमान जी ने राम जी से पूछा, 'प्रभु, आप कहाँ जारहे हैं?' राम जी ने कहा, 'सुकंत का वध करने।' हनुमान जी ने कहा, 'प्रभु, छोड़ दीजिए।' राम जी ने कहा, 'नहीं, हनुमान, मैंने सुकंत का वध करने की प्रतिज्ञा की है।' हनुमान जी बोले, 'प्रभु, मैंने उसे बचाने कावचन दे दिया है।' राम जी ने कहा, 'ऐसा नहीं हो सकता, हनुमान, क्योंकि मैंने अपने गुरुदेव विश्वामित्र के चरणों की सौगंध खाई है।' हनुमान जी बोले, 'प्रभु, मैंने अपने इष्ट देवकी सौगंध खाई है, मैंउसे बचाऊंगा।'
हनुमानजी सुकंतके पास पहुँचे औरकहा, 'चलो।' सुकंत ने पूछा, 'कहाँ?' हनुमान जी बोले, 'तुम्हारी वजह से हमारी शरणचली गई, तुम्हें कौनसी शरण बताऊँ।' हनुमानजी राजा सुकंतको जंगलमें ले गए औरसोचने लगे कि अबक्या करें। तभी हनुमान जीने राजा सुकंतसे कहा, 'राम नाम जप करो, "मंत्र जाप मम दृढ़विश्वास।"' हनुमान जी ने कीर्तनशुरू किया, 'श्री राम जयराम जय जय राम।' सुकंतने भी कीर्तन करनाशुरू कर दिया। बीच-बीच में सुकंतहनुमानजी से पूछने लगे, 'हम बच तो जाएंगे?' हनुमान जी ने कहाराजा आप दृढ़ विश्वासरखो आप बच जाओगे।हनुमान जी कीर्तन करनेलगे सुकांति भी कीर्तन करनेलगा भाव से हनुमानजी के नेत्रों सेअश्रु प्रवाह होने लगे। सुकनके नेत्रों से भी अश्रुप्रवाह होने लगे परंतुभय से।
सुकंत सोचने लगा अब हम शायद ही बचे इतनी बड़ी सी सेना और स्वयं भगवान विरोध में, यह दो अक्षर का नाम क्याकरेगा। पर हनुमान जी कह रहे थे “मंत्र जाप मम दृढ़ विश्वासा”।
रामजी सेना लेकर सुकंत के यहाँ पहुँचे और पूछा, 'कहाँ है सुकंत?' लोग बोले, 'वह तो भाग गया।' रामजी ने पूछा, 'कौन ले गया?' लोगों ने बताया, 'एक वानर उसे लेकर चलागया।' राम जी राम समझ गए कि हनुमान जी सुकंत को लेकर चले गए हैं । राम जी ने लक्ष्मण जी से कहा, 'हनुमान का पता लगाओ।' लक्ष्मण जी बोले, 'प्रभु, हम कहाँ से उनका पता बताएँ? आपको हनुमान जी का पता पता है और हनुमान जी को आपका।' प्रभु राम जी बोले, 'अच्छा ठीक है, चलो जंगल में।'
हनुमानजी जंगल में कीर्तन कर रहे थे, और सुकंतजी हनुमान जी के पीछे छुपे हुए थे। जब सुकंतने राम जी की सेना देखी, वह राम नाम लेना भूल गया और रोने लगा। हनुमान जीने बहुत कहा, 'राम नाम लेना शुरू करोऔर दृढ़ विश्वास रखो।' उन्होंने सुकंतको अपनी पूँछ केपीछे छुपा लिया। रामजी के बाण चलते, परंतु राम नाम कीर्तन का जो चक्र था, उसके आगे बाण का कुछ भी प्रभाव नहीं होता। राम जी हताशहो गए। लक्ष्मण जी को लगा कि हनुमानजी राम जी को परेशान कर रहे हैं।उन्होंने हनुमान जी की छातीपर बाण चला दिया।बाण लगते ही रामजी मूर्छित हो गए।
लक्ष्मणजी सोचने लगे, 'यह क्या हुआ?' उन्हें लगा कि हनुमानजी ने कोई शस्त्र राम जी पर चलादिया है। परंतु जब लक्ष्मण जी ने जाकरदेखा, तो पाया किहनुमान जी के हृदयमें राम बसते हैं।चोट हनुमान जी को लगती है, मूर्छित राम जी होजाते हैं। राम जी की मूर्छा दूर हुई, और उन्होंने हनुमान जी की छाती पर लगी चोट देखी।श्री राम जी हनुमानजी को दुलार करनेलगे।
रामजी ने अपनी आँखेंबंद कर लीं औरहनुमान जी के सिरपर हाथ रखा। हनुमानजी ने देखा किप्रभु की आँखें बंदहैं और उन्होंने सुकंतकोआगे कर दिया। रामजी ने हाथ सुकंतकेसिर पर रख दिया।जैसे ही राम जीने आँखें खोलीं, उन्होंने देखा कि यहसुकंतहै। राम जी मुस्कुरानेलगे। हनुमान जी के नेत्रोंमें आंसू आ गएऔर उन्होंने हाथ जोड़कर प्रभुराम जी से कहा, 'प्रभु, सब कुछ आपकेहाथों में है।'
रामजी बोले, 'हनुमान जी, तुम कृपाकर दो तो मुझेकृपा करनी ही पड़तीहै, परंतु गुरुजी को क्या जवाबदेंगे।' तभी विश्वामित्र जीका भी आगमन होगया। तुरंत हनुमान जी ने सुकंतसेकहा, 'उस समय प्रणामनहीं किया था, अभीजाकर प्रणाम कर लो, प्राणबच जाएंगे।' सुकंतप्राण बचाकर भागे और विश्वामित्रजी के चरणों मेंगिर गए। विश्वामित्र जीप्रसन्न हो गए औरबोले, 'राम, इसे क्षमाकर दो। साधु काकाम सुधार है, संघार नहीं।इसे अपनी गलती काभान हो चुका है।'
सुकंतकीजान में जान आईऔर उनके प्राण बचगए। उनसे पूछा गया, 'संत को प्रणाम नकरने की दुर्बुद्धि तुम्हेंकिस कुसंग में मिली थी?' सुकंतने जवाब दिया, 'कुसंगमें नहीं, सत्संग में ही मिलीथी।' पूछा गया, 'कौनसे संत के संगमें?' तभी नारद जीप्रकट हो गए औरबोले, 'मैंने ही कहा था।' राम जी ने पूछा, 'यह लीला क्यों की, नारद जी?' नारद जीबोले, 'मैं जहाँ जाताथा, मुझसे पूछा जाता था, भगवान बड़े हैं याभगवान का नाम बड़ा? मैंने सोचा, एक लीला ऐसीहो जाए जिससे सभीको उत्तर मिल जाए।
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