वृंदावन में एक बाबा रहा करते थे, जिन्हें मदन टेर के अंधे बाबा भी कहा जाता था। बाबा सात-आठ वर्ष की आयु में वृंदावन आ गए थे। वे पढ़े-लिखे नहीं थे, बस "श्यामा-श्याम" की रटन किया करते थे। बाबा ने श्यामा-श्याम की याद में पूरा जीवन बिता दिया। उनका प्रेम इतना गहरा था कि "श्यामा-श्याम" का नाम लेते ही उनकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगती थी। ऐसा कहा जाता है कि बाबा रोते-रोते नेत्रहीन हो गए थे।
करुणामयी श्री राधा रानी ने बाबा की पुकार सुनी। वे इसे सहन न कर सकीं और श्याम जी से कहने लगीं—
"यह बाबा रो रहे हैं, नेक जाओ, हँसाओ तो!"
भगवान श्रीकृष्ण बाबा के पास गए और पूछने लगे—
"ए बाबा, काहे को रो रहे हो? भूख लगी है? कुछ ले आऊँ खाने को?"
बाबा ने सोचा, कोई ग्वारिया (ग्वाला) होगा, परंतु स्वर बड़ा मीठा था। तब बाबा बोले—
"ए ग्वारिया, तू जा यहाँ से! मोहे भजन करन दे!"
प्रभु ने फिर से पूछा—
"बाबा, काहे को रो रहे हो?"
बाबा बोले—
"तोहें मैंने कह दई, चला जा यहाँ से, मोहे भजन करन दे!"
प्रभु बाबा से अटखेलियाँ कर रहे थे। बार-बार पूछ रहे थे—
"बाबा, भूख तो न लगी?"
बाबा झुँझला गए और लाठी उठाकर बोले—
"जारो के न जारो यहाँ से, के तोहें बताऊँ!"
इतने में लाडली जी (राधा रानी) भी आ गईं। लाडली जी ने कहा—
"यह आपसे नहीं हँसेंगे, लाओ, मैं इनको हँसाती हूँ!"
लाडली जी ने विनोद करते हुए कहा—
"काहे बाबा, चो रो रहे हो? बहू खोई गई है तेरी?"
बाबा के मुख पर सहज ही मुस्कान आ गई ‘बहू’ का नाम सुनकर।
बाबा बोले—
"अरे लाली, तू तो बहुत भोली है! बाबा जी न कि बहू हुआ करे हैं का?"
लाडली जी ने कहा—
"तो बाबा, रो काहे रहे हो? तेरे कोई अपनो ना है?"
बाबा बोले—
"लाली, मैं या काजे ना रो रहा कि मेरो कोई अपनो नाय! मैं या काजे रो रहा हूँ कि जो मेरे अपने हैं, उन्होंने मोहे बिसार दई! भूल गए मोहे!"
लाडली जी ने पूछा—
"कौन तेरे अपने हैं, बाबा?"
बाबा बोले—
"एक वृषभानु की लाली है, एक नंद को छोरो है। मेरे तो वही अपने हैं, बिन ने ही मोहे बिसार दई!"
बाबा बोले—
"मोहे आश्चर्य या बात को है कि वो हमारी लाली, जा नंद के छोरा के संग रह-रह कर, बाय भी निष्ठुर हो गई है! मेरो जीवन बीत गयो, लेकिन बाय मेरी सुध न आई!"
लाडली जी ने कहा—
"मैं कैसे निष्ठुर हो गई?"
इतने में ठाकुर जी बोले—
"यह आप क्या कर रही हैं? अभी बाबा को सब पता चल जाएगा! आप स्वयं को प्रकट कर रही हैं बाबा के समीप!"
लाडली जी ने खुद को सँभाला और बोलीं—
"बाबा, हमारो नाम भी राधा ही है! जाके मारे मैंने कही!"
फिर लाडली जी बोलीं—
"बाबा, तुम्हें सुझे ना है, तुम्हें दिखे तो ना! अब तुम्हारे अपने, जिन्होंने तुम्हें बिसार दई, तुम्हारे सामने आ गए, तुम कैसे उन्हें पहचानोगे?"
बाबा बोले—
"हे लाडली, तू तो भोली है! करुणामयी लाडली जब समीप आवेगी, तो अपने कर-कमल से मेरी आँखों को छूकर अपना दर्शन देबेगी!"
इतना सुनते ही करुणामयी राधा रानी से रहा नहीं गया। उन्होंने अपने कर-कमल से बाबा के नेत्रों को स्पर्श किया और उनमें ज्योति प्रदान कर दी।
आज बाबा को उनके सभी पुण्य का फल प्राप्त हुआ! साक्षात युगल सरकार (श्यामा-श्याम) का दर्शन प्राप्त हुआ! कहते हैं कि बाबा तीन दिन तक अपने शरीर में रहे और इसके बाद नित्य निकुंज की लीला में जाकर सम्मिलित हो गए।
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