कथा: श्री राम जी ने भक्त के लिए खाना बनाया

एक गांव में एक परिवार था। उसे परिवार में एक बच्चे का जन्म हुआ। समय के साथ वह अब 20 वर्ष का हो चुका था। उसमें कोई भी दुर्गुण नहीं था वह बहुत सरल था। उसमें बस एक ही कमी थी कि वह खाता बहुत था।

खाना खाने के लिए वह बैठ जाए तो रुके ही नहीं। खाता ही जाए किसी ने उससे कहा अरे बीच में पानी तो पियो उसने कहा अरे बीच तो आए।

परिवार के पांच लोग जब तक भोजन खत्म करें तब तक वह खाता ही जाए उसमें भोजन के प्रति अत्यधिक रुचि थी।

वह खाना खाता और कहता दाने-दाने पर लिखा खाने वाले का नाम, तभी किसी ने उससे कहा तुम तो यह बोलो बोरे बोरे पर लिखा खानहार का नाम। लोग इस तरह से उसका व्यंग करते।

उसके परिवार जनों ने एक महात्मा से बोला महाराज यह बहुत खाता है इस पर महात्मा जी ने कहा यह उतना ही खाता है जितना इसका खाता है।

महाराज जी का उत्तर परिवार जनों को समझ में नहीं आया। उन्होंने उसे युवक को कहा कि अब जाओ यहां से काम कुछ करते नहीं हो, दिन भर खाते रहते हो।

सरल सीधा युवक चल दिया। मार्ग में एक आश्रम के पास ठहरा तभी आश्रम के शिष्य दिखाई दिए शिष्यों का स्वरूप हष्ट पुष्ट था। युवक ने मन ही मन सोचा यहां बढ़िया है खाने को खूब मिलेगा काम कुछ करना नहीं है वह आश्रम के गुरु जी से मिलने पहुंचा।

उसने कहा गुरु जी हमें अपना शिष्य बना लो कुछ नहीं बोला ठीक है गुरुजी से उसने पूछा गुरुजी खाने का क्या प्रबंध रहता है तो गुरु ने कहा यहां पर चार-पांच बार खाने की पंगत बैठती है तुम भी बैठ जाया करो।

उसने पुनः पूछा गुरुजी अगर बुरा ना मानो तो हम पांचो पंगत में बैठ जाएं। गुरु जी ने सोचा अरे यह तो बहुत खाता है गुरुजी ने भी कहा हां ठीक है बैठ जाया करो उसके बाद गुरुजी ने गले में कंठी डाल दी तिलक लगा दिया राम नाम दे दिया बोला कि नाम उच्चारण करो और भजन करो।

अब उसके दिन अच्छे गुजरने लगे। अब एक दिन उसने देखा कि आश्रम में भोजन ही नहीं बना है ना ही चूल्हे जले है, बर्तन कढ़ाई सब अपनी जगह व्यवस्थित है। उत्सुकता वश गुरु जी के पास पहुंचा और कहा गुरु जी आज भोजन नहीं बनेगा, तो गुरु जी ने कहा आज एकादशी है

इसलिए आज भोजन नहीं मिलेगा आज सब लोग पूजन और भजन करेंगे। शिष्य ने गुरु जी से कहा गुरु जी आज अगर भोजन नहीं मिला तो हम कल द्वादशी देख ही नहीं पाएंगे।

गुरुजी ने शिष्य की व्यथा सुनी और कहा देखो आश्रम में तो भोजन नहीं बनेगा तुम एक काम करो भंडार गृह से थोड़ा सामान ले जाओ और नदी किनारे जाकर खाना बना लो और पालो ,लेकिन याद रखना बिना भगवान को भोग लगाए मत खाना।

इतना सुनकर शिष्य खुशी-खुशी आश्रम से खाने का सामान दाल, तेल, चुना, सब्जी लेकर चल दिया और नदी किनारे चूल्हा जलाकर खाना बनाया और जैसे ही भोग लगाने को हुआ उसे याद आया कि भगवान को भोग लगाना है ।

सीधा सरल आदमी उसे नहीं पता भगवान को कैसे भोग लगाना है उसे लगा भगवान कोई मानव है और जैसे वह भोजन ग्रहण करता है ऐसे ही भगवान भोजन ग्रहण करते होंगे अब वह लगा भगवान को बुलाने में।

“हे प्रभु भोजन बन गया है आओ पधारो, भोजन पाओ फिर हम भी भोजन खाएं”

लेकिन भगवान नही आए

भजन गाकर बुलाया

“राजा राम आइए, प्रभु राम आइए,

मेरे भोजन का भोग लगाइए।”

भगवान फिर भी नहीं आए

सीधा-साधा व्यक्ति अब कहने लगा ही भगवान मुझे लगता है कि आप सोच रहे हैं यहां रूखा सूखा बना है लेकिन प्रभु मंदिर में भी आपको कुछ नहीं मिलेगा मंदिर से जान बचाकर तो हम ही आ रहे हैं

भगवान उसकी इसी सरल बात पर रीझ गए

तभी प्रभु राम मां सीता के साथ प्रकट हुए। सरल व्यक्ति ने भगवान से पूछा प्रभु आपके साथ यह कौन है प्रभु ने हमारी धर्मपत्नी है उसने मन ही मन सोचा गुरु जी ने कहा था एक भगवान आएंगे यहां दो-दो आए हैं

वह भगवान को देखे और भोजन को देखें क्योंकि उसने भजन दो ही लोगों के लिए बनाया था एक अपने और एक भगवान के लिए। उसने कहा ठीक है आप आए गए हैं तो भोजन ग्रहण कीजिए।

भगवान भोजन ग्रहण कर अंतर ध्यान हो गए।

अब जब अगली एकादशी आई तब गुरुजी के पास पहुंचा और गुरु जी को जाकर कहा गुरु जी वहा दो भगवान आते है। यह सुनकर गुरुजी ने सोचा भूख से व्याकुल हो गया होगा इसलिए ऐसा कह रहा है। शिष्य भोजन का समान लेकर चल दिया।

अब उसने इस बार तीन लोगों के लिए खाना बनाया और भगवान को बुलाने लगा।

राजा राम आइए सीता राम आइए मेरे भोजन का भोग लगाइए भगवान भी तुरंत प्रकट हुए परंतु इस बार व लक्ष्मण जी को लेकर साथ आए

अब जैसे ही उसने लक्ष्मण जी को देखा, दोनों हाथ सर पर रख बैठ गया अरे अब तो तीन लोग आ गए। उसने कहा भगवान आप आ गए अच्छा है भगवान यह बताइए यह साथ में कौन है? भगवान ने कहा यह मेरे छोटे भाई हैं शिष्य बोला प्रभु एक बात बताओ हमने ठाकुर जी का ठेका लिया है या ठाकुर जी खानदान का ठेका लिया है ऐसा सुनकर भगवान मंद मत मुस्कुराए लक्ष्मण जी मन ही मन सोचने लगे यहां कैसा स्वागत हुआ है अब उसने तीनों लोगों को भोजन परोसा और तीनों ने खाना खाया और फिर आप तीनों प्रभु अंतर ध्यान हो गए इस बार भी वह भूखे ही रहा

पुन वह आश्रम गया। एकादशी वाले दिन गुरु जी के पास पहुंचा गुरुजी वहा तीन भगवान आते हैं भोजन सामग्री और बढ़ा दीजिए। गुरुजी ने कहा ठीक है ले जाओ, अबकी बार उसने खाना बनाया चार लोगों के लिए, खाना बनाने के बाद बड़े आदर भाव से भगवान को बुलाने लगा और इस बार उसने बोला

“राजा राम आइए सीता राम आइए मेरे भोजन का भोग लगाइए”

अबकी बार प्रभु मां सीता साथ लक्ष्मण जी और हनुमान जी भी आए अब जैसे ही उसने हनुमान जी को देखा तो बोला हे प्रभु इस बार तो आप एक बंदर भी साथ लाए हो। प्रभु फिर मंद मंद मुस्कुराए। शिष्य ने सभी को भोजन परोसा सभी ने भोजन ग्रहण किया और सभी अंतर ध्यान हो गए इस बार की भी एकादशी उसे शिष्य के लिए पुरी हुई।

अब पुनः एकादशी आई। आश्रम में गुरु जी के पास पहुंचा गुरुजी से कहा वहां कई सारे भगवान आते हैं पहले एक भगवान आए फिर दो फिर तीन। अब आप भोजन सामग्री और बढ़ा दीजिए। गुरुजी ने सोचा इतना यह खा नहीं सकता जरूर यह बेचता होगा। गुरुजी शिष्य के पीछे-पीछे चल दिए

शिष्य भी इस बार सजग हो गया था उसने इस बार भोजन बनाया ही नहीं और लगा भगवान को बुलाने के लिए

राजा राम आइए प्रभु राम लिए,

मेरे भोजन का भोग लगाइए ।

इतना कहते ही पूरा राम दरबार उपस्थित हो गया। अब उसने देखा और इतनी सारे भगवान। अब एक पेड़ के नीचे बैठ गया। प्रभु ने पूछा क्या हुआ आज भोजन नहीं बनाया शिष्य बोला बनाकर क्या करेंगे? जब हमें मिलना ही नहीं है। आप ही बना लो और आप ही खाओ। प्रभु मंद मंद मुस्कुराए। प्रभु , मां सीता लक्ष्मण जी हनुमान जी और सभी लोगों को काम सौंप दिया मां सीता चूल्हा जलाने लगी। लक्ष्मण जी लकड़िया बिन ने चले गए। हनुमान जी भी काम में लग गए इस तरीके से भगवान राम ने परिवार सहित खाना बनाया।

तभी वहां गुरुजी आए और गुरु ने देखा कि समान ज्यों का त्यों रखा है और शिष्य आंखें मीचे बैठा हुआ है । शिष्य ने जैसे ही गुरुजी को देखा और बोला- गुरुजी देखो कितने भगवान है गुरुजी बोले कहां है मुझे तो कोई नहीं दिख रहा। उसने बोला अब तो और परेशान बड़ गई, हमें सब दिख रहे हैं गुरुजी को नहीं दिख रहे हैं भगवान जी से बोला प्रभु जी आप मेरे गुरुदेव दर्शन दीजिए आप मेरे गुरु को क्यों नहीं दिखाई दिए भगवान बोले तुम सरल हो इसलिए मैं तुम्हें देख रहा हूं । शिष्य बोला वह मेरे गुरु हैं मुझे भी ज्यादा ज्ञानवान है प्रभु बोले पर तुम सरल हो और मैं सरल के लिए सदा सुलभ हूं

शिष्य के आग्रह पर प्रभु राम ने परिवार सहित गुरुदेव को दर्शन दिए। गुरु देव भगवान के दर्शन पाकर गुरुदेव के अश्रु प्रवाहित हो गए।

सार: आप कितन ही ज्ञानवान हो, कितना भी धनवान हो अगर आप सरल नहीं हो, सहज नहीं हो तो भगवान का दर्शन आपको नहीं मिल सकता।

जीवन में सरलता और सहजता दोनों ही जरूरी है।

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