जेहि विधि नाथ होई हित मोरा, करहु सो वेगि दास मैं तोरा।"
— सुन्दरकाण्ड, श्रीरामचरितमानस

भावार्थ:
हे नाथ! मेरे लिए जो भी कल्याणकारी हो, उसे... Show More

जेहि विधि नाथ होई हित मोरा, करहु सो वेगि दास मैं तोरा।"
— सुन्दरकाण्ड, श्रीरामचरितमानस

भावार्थ:
हे नाथ! मेरे लिए जो भी कल्याणकारी हो, उसे जिस भी विधि से करें, शीघ्र करें। मैं तो आपका दास हूँ — पूर्णतः समर्पित।

समर्पण का शिखर यही है –
जहाँ इच्छा नहीं, अपेक्षा नहीं, बस प्रभु पर पूर्ण विश्वास और प्रेम हो।
जब जीवन में कुछ समझ न आए, तब यह चौपाई हृदय में रखिए –
"मैं नहीं जानता क्या अच्छा है, पर मेरा राम जानता है।"

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