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हमारे साथ श्री रघुनाथ तो, किस बात की चिंता

dikshathal

हमारे साथ हैं श्री रघुनाथ, फिर किस बात की चिंता?
शरण में जब रख दिया माथ, फिर किस बात की चिंता?

दिन-रात क्यों करते हो तुम, बिन कारण की चिंता?
तेरे स्वामी को रहती है, तेरी हर बात की चिंता ॥ (2)

हमारे साथ हैं श्री रघुनाथ, फिर किस बात की चिंता?
शरण में जब रख दिया माथ, फिर किस बात की चिंता?

न भोजन की, न जल की चिंता,
न जीवन की, न मरण की चिंता —
हर श्वास में बस रहे,
भगवान नाम की चिंता ॥ (2)

हमारे साथ हैं श्री रघुनाथ, फिर किस बात की चिंता?
शरण में जब रख दिया माथ, फिर किस बात की चिंता?

विभीषण को दिया अभय-वर,
लंका बन गई क्षण में सुंदर —
जब हम गाते उनके गुणगान,
तो फिर किस बात की चिंता ॥ (2)

हमारे साथ हैं श्री रघुनाथ, फिर किस बात की चिंता?
शरण में जब रख दिया माथ, फिर किस बात की चिंता?

ब्रजेश पर हुई कृपा अपार,
बना लिया प्रभु ने दास अपना प्यार —
अब उनके हाथ में है मेरा हाथ,
तो फिर किस बात की चिंता ॥ (2)

हमारे साथ हैं श्री रघुनाथ, फिर किस बात की चिंता?
शरण में जब रख दिया माथ, फिर किस बात की चिंता?

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